रविवार, 28 अगस्त 2011

क्यों आख्यान (why narrative)... 1

(इस पोस्टिंग के लिए माननीय डाक्टर के.एन. आनंदन से आभारी हूँ.)

छात्रों को समृद्ध भाषाई अनुभव प्रदान करनेवाली प्रोक्ति के रूप में आख्यान को स्वीकार करते हैं। आख्यान सिर्फ़ निश्चित घटनाओं की परम्परा नहीं। यह कुछ बिंदुओं में शुरू होकर घटनाओं के निश्चित श्रेणी से गुज़रकर स्वाभाविक चरम बिंदु तक पहुंचनेवाली रूढिगत कहानी (जैसे, सोने के अंडे देनेवाली बतक की कहानी) के समान भी नहीं।

प्रक्रिया 1

यह कहानी पढिये।

कबूतर और चींटी

एक तालाब के किनारे के पेड़ पर एक कबूतर और चींटी रह्ते थे। एक दिन चींटी तालाब में गिरी। वह तैर नहीं सकती थी। कबूतर ने यह देखा। उसने एक पत्ता चीटी के पास डाल दिया। चींटी पत्ते पर चढ़कर किनारे पहुँची। उसने कबूतर को धन्यवाद दिया।

प्रश्न 1. यह कहानी कक्षा में कैसे प्रस्तुत करेंगे?

प्रश्न 2. छात्रों के ध्यान को कहानी के आशय तक लाने के लिए क्या कर सकते हैं?

कुछ रूढिगत सोपान ऐसे होते हैं-

  1. चित्रों के सहारे कहानी प्रस्तुत करेते हैं।
  2. उचित चेष्टाएं दिखाते हैं।
  3. अपरिचित शब्दों के स्थान पर, मातृभाषा के समान शब्दों का प्रयोग करते हैं।
  4. कहानी के कुछ अंशों की व्याख्या मातृभाषा में देते हैं।
  5. कहानी को दुहराते हैं।
  6. आशय ग्रहण के प्रश्न पूछते हैं।

इससे छात्र कहानी के आशय तो समझते हैं। एक निष्क्रिय श्रोता के समान, अपने चिंतन की क्षमता का प्रयोग न करते हुए, जानकारी के जमाव के रूप में वे इसे स्वीकार करते हैं। अध्यापिका कहानी तो प्रस्तुत करती हैं, लेकिन यह नहीं कह सकती कि बच्चों के दिमाग में तदनुरूप चिंतन को उपजाती हैं। ऊपर्युक्त ढंग के कहानी-प्रस्तुतीकरण से होनेवाले केवल ध्यान से आतंरिक भाषा ( inner speech/innate language) रूपायित नहीं होगी. बच्चों के मन में आतंरिक भाषा को पैदा करने के ट्रीगर (trigger) के रूप में आख्यान का प्रयोग करते हैं। ऊपर्युक्त कहानी को आख्यान के रूप में तैयार करना है. यह कैसे संभव है?

प्रक्रिया 2

इन प्रश्नों पर ध्यान दें.

  1. कबूतर और चींटी की कहानी को कैसे आख्यान में बदलें?
  2. कौन-कौन से मनो-चित्र रूपायित होना है?
  3. बचों के मन में तदनुभूति (empathy) कैसे बनाएँगे?

  1. घटनाएँ कौन-कौन सी हैं?
  2. ये घटनाएं कहाँ घटती है?
  3. पात्र कौन-कौन हैं?
  4. वे क्या-क्या कहते हैं?
  5. उनके मानसिक भाव क्या है?

विभाग ‘अ’ के प्रश्न इनसे संबद्ध है जो हम पूरे आख्यान में होना चाहते हैं। ‘आ’ आख्यान के निर्माण के आधार हैं। इन प्रश्नों के आधार पर प्रक्रिया 1 की कहानी को आख्यान के रूप में पुनर्लेखन करें।

प्रिय पाठक बंधू,

अगर यह दायित्व आप को मिलें तो आख्यान कैसे बनाएँगे? ज़रा कोशिश करें। 'चांदनी' में लिखें।

शुक्रवार, 19 अगस्त 2011

आशय एवं धारणाएं-2

पिछले अंक में एक वाचन सामग्री के आशय एवं धारणाएं तैयार करने की बात पर हम ने चर्चा की थी. अब रही लेखन के सन्दर्भ में ये तैयार करने की बात.
यह कार्य भी आसान से कर सकते हैं.
याद रखें, प्रत्येक सन्दर्भ में लेखन की प्रक्रिया किसी वाचन प्रक्रिया से मिलकर आती है.
यही नहीं आख्यान तथा किसी अन्य सामग्री और संवाद द्वारा आशय (theme) तक ज़रूर पहुंचेगा.
अत: वाचन सामग्री से जो समस्या परक आशय मिलता है वही लिखित मामग्री का भी बनेगा. लेकिन भाषागत आशय अलग होगा, जबकि लिखने की विधा, वाचन की सामग्री से भिन्न हो.
भाषा परक आशय वाचन के सन्दर्भ में जिस प्रकार निकाला, उसी तरीके से यहाँ भी वह कर सकते हैं. क्योंकि हर प्रोक्ति की कुछ भाषागत विशेषताएं होती हैं. ये उसकी निजी होंगी.
एक बालगीत लें- इसकी क्या-क्या विशेषताएं होती हैं?
दखें -
एक आशय(theme) ज़रूर होगा,
पंकियों की संरचना(srtucture) में समानता होगी,
ताल/संगीत (music) अंतर्लीन होगा और
ये सब मिलकर भावात्मकता (emotion) भी होगी.
ऐसा है तो, बालगीत का आशय यह होता है -
बालगीत आशय युक्त, संरचनात्मक, संगीतात्मक एवं भावात्मक होता है.

इस बालगीत के आधार पर आप खुद यह परखें -
बैठ हवा के ठेले में
बादल आये रेले में
बरसे खूब बजारों में
बूँदें अटकीं तारों में

हम चर्चा कर रहे थे, लेखन के सन्दर्भ के आशय पर. बालगीत में पंक्तियाँ जोड़ने की बात लें.
बालगीत का आशय उपर्युक्त है तो पंक्तियाँ जोड़ने की प्रक्रिया का यह हो सकता है -
दी गयी पंक्तियों के आशय , संरचना, संगीत और भाव से युक्त पंक्तियाँ जोड़कर बालगीत को आगे बड़ा सकते हैं.
इस प्रकार प्रत्येक रचना के भाषागत विशेषताओं के आधार पर उसके भाषा परक आशय तय करें.
ये भाषागत विशेषताएं ही सूचक बनते हैं.
संक्षेप में कहें तो, प्रोक्तियों के जो सूचक होते हैं, वे ही भाषा परक आशय में अंतर्लीन हैं.

रविवार, 14 अगस्त 2011

आशय एवं धारणाएं - 1

कक्षाई गतिविधियों और प्रक्रियाओं को सफल बनाने के लिए प्रत्येक इकाई के आशयों एवं अवधारणाओं पर अध्यापिका अवगत होनी है.
आयोजन का आधार आशय होता है. निश्चित आशय एवं धारणा तक बच्चों को पहुंचाने की प्रक्रियाओं को तैयार करना ही आयोजन है.
मतलब यह है कि टीचिंग मानुअल तैयार करने के लिए आशय एवं धारणा की अवधारणा ज़रूरी है.
पांचवीं और सातवीं कक्षा की पाठ्य पुस्तकों की प्रक्रियाओं के आशयों एवं अवधारणाओं के सम्बन्ध में स्रोत-पुस्तिका में सूचना नहीं के बराबर है.
इस कमी की पूर्ती के लिए उपयोगी कुछ बातें यहाँ दी जाती है.
हमारी पाठ्यचर्या के अनुसार दो तरह के आशय होते हैं-
  1. समस्या परक
  2. भाषा परक
वाचन के लिए जो सामग्री दी जाती है उसकी समस्यागत और भाषागत विशेषताओं का विश्लेषण करने पर इन दोनों को निकाल सकते हैं.
समस्यागत आशय लेना आसान है. लेकिन भाषागत आशय को सूक्ष्म विश्लेषण करके निकालना पड़ेगा.
लगता है, ऐसे कुछ प्रश्नों को आधार बनाकर सोचने पर भाषा परक आशय भी आसान से समझ पायेगा-
  1. वाचन की सामग्री कौन सी विधा की है?
  2. इस विधा की मुख्य विशेषता कौन सी है?
  3. इसकी और क्या-क्या विशेषताएं होती है?
अब लें सातवीं कक्षा पहली इकाई के लारी बेकर का लेख 'कूडा और कचरा'.
इसका समस्या परक आशय क्या होगा? इसके दो आशय हो सकते हैं-
  • कूडा-कचरा बीमारी का कारण बनता है.
  • कूड़े-कचरे का ठिकाने लगाना है.
अब सोचें इसके भाषा परक आशय पर-
यह एक लेख है. शायद एक लेख की सबसे बड़ी विशेषता यही होगी कि इसपर चर्चित विषय की पूर्णता होनी है.
साथ ही क्रमबद्ध होकर बातों को प्रस्तुत करना भी है.
शब्द और प्रयोग विषय के अनुरूप हो.
तो इन्हीं के आधार पर लेख के आशय निश्चय कर सकते है -
  • लेख में विषय की पूर्णता होती है.
  • लेख में बातों की क्रमबद्धता होती है.
  • लेख के शब्द और प्रयोग विषय के अनुरूप होते हैं.
लेखन के सन्दर्भ में भी लगभग इसी प्रकार आशयों को निश्चय करते हैं.

शनिवार, 13 अगस्त 2011

प्रस्तुति

दोस्तों,
यह ब्लॉग आप के लिए है . मैं चाहता हूँ कि आप हमेशा इसमें संपर्क करते रहें.
समय-समय पर सलाह देते रहें.

आप का मित्र,
मनोजकुमार पी